
चन्दौली जिले के एक मुस्लिम परिवार ने शादी की ऐसी अनोखी मिसाल पेश की कि उनकी हर जगह तारीफ हो रही है। हाजी सिराजुद्दीन के भतीजा ने बिना दहेज व पांच बाराती लेकर मिसाल कायम किया। जबकि दूल्हे की इस फैसले की तारीफ जगह जगह रिश्तेदारियों में भी होनी शुरू हो गई है।

कौन कहता है कि आसमान में सुराख नहीं होता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों,यह लाइन कवि दुष्यंत कुमार की पंक्तियां मुस्लिम समुदाय में बेटियों के दहेज रहित निकाह की मुहिम पर सटीक बैठ रही है।
बिना दहेज व पांच बारातियों के साथ संपन्न
जानकारी के अनुसार मुगलसराय कोतवाली अंतर्गत कुंडा कला गांव के हाजी सिराजुद्दीन के भतीजा गुलफान अहमद का निकाह अलीनगर थाना क्षेत्र चंद्रखा गांव के दाउद अली की पुत्री के साथ बिना दहेज व पांच बारातियों के साथ संपन्न हुआ। समाजसेवी हाजी सिराजुद्दीन ने बताया कि इस्लाम में शादी समारोह में लड़की के परिवार पर शादी का खर्च नहीं डाला जाता। इसी आधार पर हमारे बच्चों का निकाह हुआ। मेरा तीन लड़का है,जिसकी शादी 15 वर्ष पहले बिना दहेज निकाह करके समुदाय में उदाहरण प्रस्तुत किया था। इसके बाद से ही अपने खानदान के जितने लड़के की शादी होती है उसमें खास तौर से बिना दहेज व पांच बारातियों के साथ निकाह होता है। कहा कि लड़के वाले को बिना दहेज की शादी के लिए मनाना जितना मुश्किल है, उससे भी कठिन लड़की वाले को राजी करना है कि वह बेटी को बिना दहेज विदा करें।

सोच बदलने की जरूरत
सिराजुद्दीन ने कहा कि बिना दहेज निकाह करना लड़की के पिता को अपना अपमान लगता है उसे लगता है कि समाज क्या कहेगा। उसकी इसी सोच के चलते कई गरीब बेटियों का निकाह नहीं हो सक रहा है। उनकी उम्र 40 और 45 वर्ष हो गई है जमाना बदल गया है समाज को अपनी सोच बदलनी होगी।
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नदीम साबरी ने बताया कि अगर लड़की वाले अपनी मर्जी से अपनी लड़की को कोई तोहफा देते हैं तो वह दहेज के नाम पर जायज है,हालांकि यहां याद रखना जरूरी है कि तोहफे का लेन देन दोनों तरफ से होना चाहिए। कहने का मतलब यह है कि अगर लड़की वाले कोई तोहफा देते हैं तो लड़के वालों को भी तोहफा देना चाहिए।लेकिन इस बात की भी ताकीद की जाती है कि अगर तोहफों से यह जाहिर होता है कि दहेज की रस्म अदा हो रही है, तो तोहफे न देना ही ज्यादा बेहतर है। शादी में सबसे बड़ी बुराई दहेज की रस्म है,दहेज की रस्म कई लड़कियों के घर वालों पर आफत बन कर टूट पड़ती है।आज कल हदेज में पैसों की मांग भी होने लगी है। इसका असर ये हुआ है कि कई लड़कियों की शादी इसलिए नहीं हो पाती है कि उनके मां-बाप दहेज के लिए पैसों का इंतेजाम नहीं कर पाते हैं।
दहेज एक बड़ी समस्या
इस संबंध में मौलाना मंसूर आलम ने बताया कि बच्चों की शादियां निकाह चुनौती बनती जा रही है, कई बेटियों की तो शादियों में इसी कारण देरी होती जार रही की बैंड बाजा वह बारातियों पर खर्च और सहन नहीं हो पता, दहेज एक बड़ी समस्या है। कई पर दहेज के कारण रिश्ता टूट जाता है।
बच्चों की शिक्षा व रोजगार पर करें खर्च
इसलिए दहेज जैसी प्रथाओं पर भी अंकुश लगाने की आवश्यकता है। शादियों में जो आवश्यक खर्च करने से बेहतर है कि उसे हम बच्चों की शिक्षा रोजगार व अन्य आवश्यक कार्य के लिए खर्च करें। मंसूर कहते हैं कि निकाह एक तरह से दो परिवार को जोड़ने का माध्यम है इसमें दिखावे की कोई जगह नहीं होनी चाहिए।



















